शनिवार, 15 अगस्त 2009

सांकेतिक राष्ट्रगान

राष्ट्रगान सुनने से हर हिन्दुस्तान मे जोश और जज्बा दिखने लगाता है... देशप्रेम की भावना से प्रेरित रीवा के मूंकबधिर छात्रों नें सांकेतिक राष्ट्रगान को इजात किया है। सांकेतिक शैली से सैकडों मूकबधिर राष्ट्रगान कर देश को सलाम करते है। हिन्दुस्तान की मिट्टी मे इतना जोश और जुनून है कि देश के लिये कुछ भी कर गुजरने की प्रेरणा हर एक देश प्रेमी के दिलो दिमाग मे होती है। इसे जज्बे से लबोरेज इन मूक बधिरों छात्रों ने सांकेतिक शैली से राष्ट्रगान करना सीखा लिया है। हॉथ की उगलियॉ के इसारे से सांकेत कर ये वहीं राष्ट्रगान प्रस्तुति दे रहे है, जो आम इंसान गाकर सुनता है। अब ये अपने आप को किसी से कमजोर नही समझ रहते है। यह करना बेहद कठिन था लेकिन इनकी लगन और प्रवल इच्छा ने यह कर दिखाया। अब ये राष्ट्रगान करने मे पूरी तरह से परगत हासिल कर चुके है। पहले ही अपने आप को समाज की मुख्य धारा से अलग होना महसूस करते थे लेकिन अब ये संकेत के माध्यम से अपनी देश प्रेम की भावना को जन-जन तक पहुचा सकते है। कौन कहता है आसमान मे सुराग हो नही सकता...एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों। सांकेतिक रुप से राष्ट्रगान कर इन बेजुबानों ने वतन के प्रति अपनी प्रेम दर्शा दिया है। इनसे वतन परस्त देश वासियों को सीख लेनी चाहिये।

नदी में ध्वजारोहण

देश के क्रॉतिकारी भले आज हमरे बीच ना हो, लेकिन इनकी परंपरा आज भी जीवित है। देश में जज्बा जगाने के लिये कॉतिकारी जिस तरह से अंग्रजों से बगावत करके राष्टध्वज रोहण किया करते थे। ठीक उसी तरह अब भी रीवा में कुछ देशभक्त नदी के बीच जाकर नाव में ध्वजारोहण करते है और मुश्किल से मिली आजादी के महत्व को बताते है। यै मेरे वतन के लोगों जरा ऑख में भर लो पानी.. जो शहीद हुये है उनकी जरा यदा करो कुर्वानी... देश की आजादी का सपना सजोये कॉतिकारी भले ही अब आजाद भारत देखने के लिये ना हो, लेकिन उनकी कुर्बनी आज भी याद की जाती है। जी हॉ रीवा मे शहीदों की इसी कुर्वानी को तरोतजा करने के लिये बीहर बिछिया नदी के राजघाट तट पर क्रॉतिकारी ठंग से ध्वाजरोहण किया जाता है। यह अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही वर्षो पुरानी परंपरा है और इसे आज भी कायम रखा गया है। नदी मे ध्वाजारोहण करने से युवाओ मे उत्साह और देश के लिये कॉति करने का जज्बा बनता है। इनकी रोम-रोम में भारत माता के लिये त्याग और बलिदान की भावना समा जाती है। यही वजह है कि हर हिन्दुस्तानी चाहता है कि देश के झंडा की आन बान सदैव बनी रहे। ध्वाजारोहण करने के साथ ही ये देशभक्त आजादी के महत्व को लोगो तक पहुंचाते है और देश की मिट्टी का कर्ज अदा करने की सीख देते है। इससे देश के लिये मर मिटने का आगाज हो रहा है वहीं क्रॉतिकारियों की कुर्वानी तरोतजा हो रही है।

रविवार, 9 अगस्त 2009

नन्हा बाइकर

आज के इस दौर मे हर युवा की तेज बाइक चलाना पसंद करता है, लेकिन यह कारनाम ढाई साल से भी कम उम्र का बच्चा कर दिखाये तो.. आप भी हैरत मे पड जायेगें। निश्चित ही आप सोच मे पड गये होगें लेकिन ना तो यह रोबोट है और ना ही कोई करिश्माई बच्चा। इन दिनो यह कारनामा रीवा का एक नन्हा बच्चा दिखा रहा है। इस नन्हे बच्चे के हॉथ ना केवल मोटर साइकल का हैडिल है बल्कि बाइक को कंड्रोल करने और गति बढाने घटाने का भी जिम्मा अनवार के कमजोर कंधों मे है। अनवार के पिता हाजी इम्तियाज फ्रक के साथ मोटर साइकल मे सवार है और बेटा हैडिल संभाल रहा है। अनवार के उम्र महज 2 साल 4 माह है और वजन 10 किलो से भी कम बावजूद इसके अनबार के पिता दस गुने वजन से भी अधिक की मोटर साइकल को बिना किसी झिझक के अनवार के हॉथो सौप रखे है। अनवार हर रोज 2-3 किलोमीटर मोटर साइकल से सफर तय करता है, भले ही भीड से भरी सडक क्यो ना हो। बेखौफ होकर पिता अनवार को गाडी चलाने की इजाजत दे देते है और लडखडाने पर सहारा। फिर क्या अनवार मनमाफिक 60-70 की तेज रफ्तार से गाडी चलाने से नही चूकता। अनवार को यह शौक पिछले तीन महीने पहते आया.. बाइक मे बैढने पर अकसर हैडिल पकडने की जिद किया करता था और अब यह शौक जुनून मे बदल गया, शुक्र है कि अव तक कोई अनहोनी नही हुई। अनवार बाइक की चाबी घुमाता है.. इम्तियाज किंक मरकर गियर में डाल देते है और फिर नन्हा बाइकर निकल पडता है वाहनो से भारी सडको में ना तो इसे कोई खौफ होता और ना ही कोई परेशानी.. इन कारनामो को देख अनवार की उम्र से कभी बडे बच्चे भी दॉतों तले उंगली दबाने लेते है। फिर बाइक मे रेस लगाना तो बहुत दूर है। करिश्मई इन कारनामो से भले ही अनवार के पिता और परिजन फक्र महसूस करते हो लेकिन यह कारनामे जोखिम से भरे है, जिस उम्र के बच्चो मे अपने आप को संभाल पाने की झमता नही होती उनके हॉथ मे वजन दार गाडी का हैडिल पकडा देना जोखिम का काम है। वर्तमान में जहॉ चेयरटी शो की होड मे हर कोई अपने बच्चो को कुछ ना कुछ बनाना चाहता है वही अनवार के पिता इन मासूम बच्चे को क्रिकेटर बनाना चाहते है वही इस जोखिम भरे कारनामो को भी करवाने से कोई इतेफाक नही रखते। बहरहाल पूत के पॉव पलने में ही नजर आते है लेकिन यहॉ तो सब उल्टा ही उल्टा है... पलने से दूर पिता पूत को जोखिम भरी बाइक मे घूमा कर आसमान मे तारे गिन रहे है।

बीस साल बाद भी नही मिली मान्यता

बीस साल बीत जाने के बाद भी आयुर्वेद महाविद्यालय रीवा में संचालित बी.ए.एम.एस कोर्स को मान्यता नही मिली है। साथ ही पिछले दो वर्षो से एडमीशन भी बंद कर दिया गया है। इससे लाखों रुपये खर्च कर बी.ए.एम.एस. और एम.डी. की डिग्री हासिल करने वाले छात्रों का भविष्य अधर मे लटक गया है। इसी के चलते लामबंद होकर सभी छात्र हडताल पर चले गये है और सरकार को चेताने के लिये सदबुद्धी यज्ञ भी किया। हवन कुंड है सजो-समान और पंडित-पुजारी भी है.. यह देखकर सहज समझा जा सकता है कि यह किसी यज्ञ की तैयारी है। मगर यह किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिये यज्ञ नही किया जा रहा है बल्कि डॉक्टर की ड्रिग्री हासिल करने वाले बी.ए.एम.एस. और एम.डी. के छात्र कर रहे है। वर्ष 1987 में शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय में बैचलर ऑफ आयुर्वेद मार्डन मेडिसिन एण्ड सर्जरी डिग्री के स्थान पर आयुर्वेदाचार्य (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एण्ड सर्जरी) कोर्स शुरु किया गया। लेकिन सी.सी.आई.एम. ने इसे सेडयूल-2 मे नहीं रखा। जिससे डिग्री धारी छात्र प्रदेश के बाहर किसी भी पद के लिये मान्य नही है। बी.ए.एम.एस. और एम.डी. की डिग्री हासिल करने के बाद भी इन छात्रों को रोजगार नही मिल रहा है। साथ ही कालेज मे एडमीशन भी बंद कर दिया गया है इससे सैकडो छात्रों का भविष्य अधर मे लटक गया है। पिछले दो सालो से मेडिकल छात्रों का शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय मे एडमीशन नही हो रहा है और इस बार भी होने के कोई आसार नजर नही आ रहे है। ऐसे अपने भविष्य से चिंतित मे छात्र लामबंद हो गये है और हर हाल में कॉलेज की मान्यता चाहते है। पिछले एक सप्ताह से इनकी हडताल चल रही है और अब सरकार को बुद्धी दिलाने के लिये यज्ञ भी कर डाला। इस यज्ञ से आयुर्वेद के जनक धनवंतरी भगवान खुश होगे और केन्द्रीय चिकित्सा शिक्षा गुलामनवी आजाद और अनूप मिश्रा को बृद्धी प्रदान करेगें। बी.ए.एम.एस. और एम.डी. की डिग्री हासिल करने के लिये छात्रों ने लाखों रुपये खर्ज किये। लेकिन सी.सी.आई.एम की नही मिली डिग्री को मान्यता और पिछले दो सालो से एडमीशन भी बंद हो गये। कॉलेज प्रबंधन सेन्ट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सी.सी.आई.एम.) के मान्यता की शर्त पूरी नही कर पा रहा है जिसके चलते यह परेशानी खडी हुई है। प्रदेश के पॉच आयुर्वेद कालेजों की मान्यता अधर में लटक गयी है.. इसमें रीवा भी सामिल है। वर्ष 2005 में प्रदेश के विभिन्न आयुर्वेद कॉलेज मे एम.डी डिग्रीधारी छात्रो की नियुक्ति हुई थी, इनमे आयुर्वेद कॉलेज रीवा के भी एम.डी. करने वाले छात्र है। लेकिन डिग्री को मान्यता नही होने से इनको नौकरी जाने का भय बना हुआ है। यदि डिग्री को कोई अदालत मे चुनौती देता है तो नौकरी में लेने-देने पड सकते है।

ग्रह-नक्षत्र की चाल से होती है समलैगिकता

सारे देश मे समलैगिकता को कानूनी रुप से हरी झंडी मिलने के साथ ही यह बहस का मुद्दा बना हुआ है। चिकित्सा जगत जहॉ इसे मानसिक विकृति बताता है वहीं ज्योतिषियों के अनुसार यह एक तरह से ग्रह नक्षत्रों की चाल पर जन्मजात आदत होती है। नक्षत्रों का असर बदलते ही समलैगिक मनुष्य सामान्य हो जाता है। समलैगिंता को देश में मान्यता मिलने से कई सारे प्रश्न खडे हो रहे है, वास्तव में ज्योतिष के अनुसार समलैगिकता मानव जीवन में एक दोष है और इसकी उत्पत्ति ग्रह नक्षत्रों से होती है। ज्योतिषों की दलील है कि यह नक्षत्र दोष कुछ राशि मे देखने का मिलता है और नक्षत्र परिवर्तन के साथ ही दूर हो जाता है। कर्क, कन्या, मीन मे देखने का अधिक मिलता है। कन्या का गुरु खराब होने से कन्या-कन्या समलैगिंक हो जाती है। मंगल और शनि खराब होने से पुरुषों मे समलैगिंकता उत्पन्न हो जाती है। लेकिन ग्रह-राशि के बदलने के साथ ही समलैगिक राशियों में आकर्षण कम हो जाता है और व्यभिचार मानव सामान्य जीवन जीने लगता है। भले ही देश में समलैगिकता को मान्यता दे दी गयी हो, लेकिन समाज इसे स्वीकार करने के मूंड में नही दिख रहा है। समलैगिकता को हरी झंडी मिलने से समलैगिंक बेहद खुश नजर आ रहे है। रीवा मे हमने समलैगिक दो लडकियो से बातचीत की.. इन ये दोनो लडकियॉ एक दूसरे से बेपनाह मोहब्वत करती है और इन्हे अलग होने की बात पर जान तक देने का मन बना रखी है। समाज मे हिन्दूओं के साथ ही गैर हिन्दू संगठन भी समलैगिंकता का पुरजोर विरोध कर रहे है। गैर हिन्दू संगठन भी इसे शरिअत के खिलाफ बता रहे है और इसका विरोध कर रहे है। लेकिन वहीं कुछ समाजशास्त्री इस कानून को आबादी के रोकथाम के लिये उपयुक्त मानते है। मगर इस बात से भी इंकार नही करते कि इसके दुष्परिणाम भी समाज को उठाने पडेगें। हमारा देश आदर्श, मूल्यों एवं परम्परावादियों का देश है, इसलिये इसके दूरगामी परिणाम होगे। दो समान लिंग धारी यदि आपस में सम्बन्ध बनाते है चाहे वह अंशकालिक या वैवाहिक हो समलैगिकता है विपरीत लिंग वालों में यह सम्बंध प्राकृतिक माना जाता है, किंतु समान लिंग वालों में यह सम्बन्ध अप्राकृतिक समझा जाता है। मनुष्य भी इसका अपवाद नहीं है मनुष्य में बहुत कम मात्रा में होने के कारण इसे काम विकृति या मनोरोग समझा गया और अपराध माना जाने लगा। कल तक जो अपराध था उसे कानूनी मान्यता मिल जायेगी लेकिन सामाजिक स्वीकारोक्ति मिलें इसके लिए समय लगेगा।


रीवा, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय नें आधा सैकडा से भी अधिक नाम-गिरामी कॉलेजों की मान्यता समाप्त कर दी है। इन कालेजों मे रीवा, सीधी, सतना, शहडोल, अनूपपुर और उमरिया में चल रहे कम्प्यूटर, लॉ, बी.एड., पैरामेडिकल और शोध संस्थान है। इस कार्यवाही के बाद से निजी महाविद्यालयो में हडकंप और एडमीशन ले चुके हजारों छात्रों का भविष्य भी अधर मे लटक गया है। कभी नकल तो कभी घोटालो के लिये कुख्यात रहने वाला अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय इन दिनों मान्यता को लेकर सुर्खियो में है। विश्वविद्यालय ने कोड 28 का हवाला देते हुये संभागभर के नामी गिरामी 73 कॉलेजों की संबद्धता एक झटके में ही समाप्त कर दी है। रीवा और शहडोल जिले मे कुल 138 महाविद्यालय है और इनमें से एक साथ 73 निजी महाविद्यालयो की मान्यता रद्द होने से हडकंप मच गया है। पिछले कुछ सालों में रीवा-शहडोल संभाग में थोक के भाव कम्प्यूटर, विधि और बी.एड. कालेज खुल गयी थे। ये कॉलेज मनमाफिक फीस छात्रो से वसूलते है लेकिन सुविधा के नाम पर यहॉ ना तो भवन है और ना ही प्राध्यापक। इसी का हवाला देते हुये विश्वविद्यालय ने इन कॉलेजो की मान्यता समाप्त कर दी है। विश्वविद्यालय की इस कार्यवाही ने रीवा-सतना और सीधी जिलें की पहचान बन चुके नामी-गिरामी कॉलेजों की संबद्धत भी समाप्त कर दी है। ये कालेज पिछले कई सालों से शिक्षा जगत मे लोहा मनवा रहे थे। इनमें 1 दर्जन विधि, बी.एड, पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट, नर्सिग, कम्प्यूटर कालेज और दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट है। 10 हजार से भी छात्र कालेज प्रबंधन के मन-माफिक मॉगी गयी रकम चुका कर एडमीशन ले चुके थे। ऐसे मे इन छात्रों का भविष्य अधर मे लटक जायेगा। उच्चशिक्षा विभाग को लम्बे समय से इन निजी महाविद्यालयों की शिकायतें मिल रही थी। लेकिन समय रहते इन्होने कोड 28 का पालन नही किया लिहाजा विभाग ने भी मान्यता रद्द करने की हरी झंडी दिखा दी। लेकिन इन कॉलेजो जो छात्र एडमीशन ले चुके है उन छात्रों को दूसरे कॉलेजो मे एडमीशन लेने का समय मिलेगा। ये छात्र प्राइवेट फर्म भर सकेगें और विश्वविद्यालय की शर्ते पूरे करने पर इनकी मान्यता बहाल हो सकेगी। जिसकी लाठी उसकी भैंस.. यही हाल है अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय का। कैम्पस के अंदर ही 2 कमरों मे बी.ए.एल.एल.बी विभाग चल रहा है लेकिन यहॉ प्रशासन की निगाह इस लिये नही गयी कि वह शासकीय है। या फिर दूसरे की गिरेवान दिखने वाले अपनी गिरेवान झांकना नही चाहते। सवाल यह उठता है कि विश्वविद्यालय ने जब इन कॉलेजो को मान्यता दी थी उस समय आखिर शर्तो को क्यो नही देखा।

चरण पादुका पर विवाद, साई भक्त हुये लामबंद

साई भगवान की चरण पादुका विदेश ले जाने के विरोध में साई भक्त हुये लामबंद। कहा भगवान की आड में लोग घूमना चाहते है विदेश इससे भक्तों मे वृद्दि नही बल्कि भगवान का होगा अपमान। गौरतलब है कि अमेरिका मे बन रहे साई मंदिर के लिये हिन्दुस्तान से चरण पादुका ले जायी जा रही है इसका भक्त विरोध कर रहे है। शिर्डी साईनाथ की चरण पादुका के विदेश ले जाने का उठा विवाद रुकने का नाम नही ले रहा है। रीवा के साई भक्त लामबंद हो गये है और किसी भी हांलत में वे पादुका को विदेश ले जाने की इजाज्त नही देगें। भक्तों की मांने तो साई शिवजी के अवतार है इन्हें प्रचार की आवश्यकता नही है, गौरतलब है कि साई नाथ की चरण पादुका अमेरिका में ले जायी जा रही है। ऐसा मानना है कि इस पादुका के विदेश जाने से साई के भक्तों मे इजाफा होगा। लेकिन साई भक्तो की माने तो इससे इजाफा नही बल्कि उनका अपमान होगा। साई भक्तों का यह भी कहना है कि सुरक्षा के नाम पर पादुको की जॉच पडताल होगी इससे भक्तो की आस्था को आघात पहुचेगें। साई नाथ के इस अपमान को रोकने के लिये भक्त कुछ भी करने के लिये तैयार है किसी भी कीमत मे पादुका को विदेश नही ले जाने दिया देगे। शिर्डी में रखी चरण पादुका से करोडों भक्तों की आस्था जुडी हुई है, लेकिन तलाशी के नाम पर पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के साथ हुये दुर्व्यवहार को हिन्दुस्तानी भूल नही सके है। फिर ये तो चरण पादुका से लोगो की धार्मिक भावनाये और आस्था जुडी है।

12 करोड रुपयें से भी अधिक रायल्टी चोरी


रीवा में 12 करोड रुपयें से भी अधिक रायल्टी चोरी के आरोप में ई.ओ.डब्बलू ने तत्कालीन एस.डी.एम., कुलसचिव, खनिज अधिकारी समेत 5 लोगों के खिलाफ एफ.आई.आऱ दर्ज की है। मामले की जॉच पूरी होने तक इस घोटाले में लिप्त और भी वरिष्ट अधिकारियो के बेनकाब होने के कयाश लगाये जा रहे है। रीवा का राष्ट्रीय राजमार्ग क्र.7 बाईपास.. इस सडक निर्माण कार्य के लिये अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय नें लगभग 50 करो़ड की मुरंम पॉथ ओरियंटल हाइवे इंडिया लिमिटेड को कौडियो के दाम बेच दी थी। पॉथ ओरियंटल ने विश्वविद्यालय और प्रशासनिक अधिकारियों से साठगॉठ कर मुरंम को मिट्टी के भाव खरीदा। साथ ही बाईपास से लगे लगभग 5 तालाबों के मुरंम कि खुदाई भी धडल्लें से की। इससे जहॉ तालाब खदानों मे तबदील हो गये वहीं कंपनी ने रायल्टी और परिवहन कर की चोरी भी बेरोक-टोक की। लेकिन प्रशासनिक अधिकारी हॉथ पर हॉथ धरे बैठे रहे। अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलसचिव, तत्कालीन एस.डी.एम., राजस्व निरीक्षक, उपयंत्री, पटवारी समेत, पॉथ ओरियंटल के खिलाफ शिकायत आर्थिक अपराध एवं अनवेष्ठ ब्यूरों सुरेन्द्र ने शिकायत दर्ज करायी गयी थी। शासन-प्रशासन की मिली भगत से अकेले पॉथ कम्पनी को फायदा पहुंचाने के लिये मुरंम को मिट्टी बता कर बेचा गया। इसमें अकेले पॉथ ओरियंटल कम्पनी को लगभग 15 करोड का मुनाफा हुआ। अनुबंध मे निर्धारित खदानों से खुदाई ना करके अपने निजी लाभ के लिये अवैधानिक तरीके से विश्वविद्यालय की भूमि पर बने तालाबों के स्वरुप को बिगाड कर बडी-बडी खदानों में तबदील कर दिया गया। आर्थिक अपराध एवं अनवेष्ठ ब्यूरों ने 8 लोगों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज की है। पॉथ कंपनी को जहॉ इस कारनामें में लगभग 15 करोड का फायदा हुआ वहीं विश्वविद्यालय को लगभग 5 करोड रुपय की क्षति हुई। हाईवे बाई पास घोटाले मे लिप्त ज्यादातर अधिकारियो का स्थानांतरण हो चुका है। इनमें एस.डी.एम शिवपाल सिंह, खनिज अधिकारी विनोद बागडे और राजस्व निरीक्षक है। जबकि कुल सचिव परीक्षित सिंह वर्तमान समय में सागर विश्वविद्यालय में पदस्थ है। आर्थिक अपराध ब्यूरों ने भले ही इस घोटाले का पर्दाफास कर मामला दर्ज कर लिया हो, लेकिन इस मामलें से जुडे सफेद पोश अभी भी जॉच के दायरे से कोशो दूर है।