शनिवार, 15 अगस्त 2009
सांकेतिक राष्ट्रगान
नदी में ध्वजारोहण
रविवार, 9 अगस्त 2009
नन्हा बाइकर
बीस साल बाद भी नही मिली मान्यता
ग्रह-नक्षत्र की चाल से होती है समलैगिकता
रीवा, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय नें आधा सैकडा से भी अधिक नाम-गिरामी कॉलेजों की मान्यता समाप्त कर दी है। इन कालेजों मे रीवा, सीधी, सतना, शहडोल, अनूपपुर और उमरिया में चल रहे कम्प्यूटर, लॉ, बी.एड., पैरामेडिकल और शोध संस्थान है। इस कार्यवाही के बाद से निजी महाविद्यालयो में हडकंप और एडमीशन ले चुके हजारों छात्रों का भविष्य भी अधर मे लटक गया है। कभी नकल तो कभी घोटालो के लिये कुख्यात रहने वाला अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय इन दिनों मान्यता को लेकर सुर्खियो में है। विश्वविद्यालय ने कोड 28 का हवाला देते हुये संभागभर के नामी गिरामी 73 कॉलेजों की संबद्धता एक झटके में ही समाप्त कर दी है। रीवा और शहडोल जिले मे कुल 138 महाविद्यालय है और इनमें से एक साथ 73 निजी महाविद्यालयो की मान्यता रद्द होने से हडकंप मच गया है। पिछले कुछ सालों में रीवा-शहडोल संभाग में थोक के भाव कम्प्यूटर, विधि और बी.एड. कालेज खुल गयी थे। ये कॉलेज मनमाफिक फीस छात्रो से वसूलते है लेकिन सुविधा के नाम पर यहॉ ना तो भवन है और ना ही प्राध्यापक। इसी का हवाला देते हुये विश्वविद्यालय ने इन कॉलेजो की मान्यता समाप्त कर दी है। विश्वविद्यालय की इस कार्यवाही ने रीवा-सतना और सीधी जिलें की पहचान बन चुके नामी-गिरामी कॉलेजों की संबद्धत भी समाप्त कर दी है। ये कालेज पिछले कई सालों से शिक्षा जगत मे लोहा मनवा रहे थे। इनमें 1 दर्जन विधि, बी.एड, पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट, नर्सिग, कम्प्यूटर कालेज और दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट है। 10 हजार से भी छात्र कालेज प्रबंधन के मन-माफिक मॉगी गयी रकम चुका कर एडमीशन ले चुके थे। ऐसे मे इन छात्रों का भविष्य अधर मे लटक जायेगा। उच्चशिक्षा विभाग को लम्बे समय से इन निजी महाविद्यालयों की शिकायतें मिल रही थी। लेकिन समय रहते इन्होने कोड 28 का पालन नही किया लिहाजा विभाग ने भी मान्यता रद्द करने की हरी झंडी दिखा दी। लेकिन इन कॉलेजो जो छात्र एडमीशन ले चुके है उन छात्रों को दूसरे कॉलेजो मे एडमीशन लेने का समय मिलेगा। ये छात्र प्राइवेट फर्म भर सकेगें और विश्वविद्यालय की शर्ते पूरे करने पर इनकी मान्यता बहाल हो सकेगी। जिसकी लाठी उसकी भैंस.. यही हाल है अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय का। कैम्पस के अंदर ही 2 कमरों मे बी.ए.एल.एल.बी विभाग चल रहा है लेकिन यहॉ प्रशासन की निगाह इस लिये नही गयी कि वह शासकीय है। या फिर दूसरे की गिरेवान दिखने वाले अपनी गिरेवान झांकना नही चाहते। सवाल यह उठता है कि विश्वविद्यालय ने जब इन कॉलेजो को मान्यता दी थी उस समय आखिर शर्तो को क्यो नही देखा।